हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !
चिया , Kshitika , tuktuk.. Tukku किस नाम से पुकारूं अपनी बिटिया को . काली काली हिरनी जैसी बड़ी बड़ी आंखें , गुलाबों की अद्खुली पंखुड़ी से छोटे छोटे प्यारे होंठ और भरे भरे गाल ॥ यह दृश्य को मेरी आंखें नही भूल सकती ॥ वह मेरा और मेरी चिया के बीच पहली बात थी जब वह अक्टूबर ३१ , २००७ को शाम 5:40 मिनट पर डिलिवरी के बाद पहली बार डॉक्टर ने उसे मिलवाया था ॥ ऐसा सुना था बच्चे पैदा होने के बाद रोते है ॥ शायद वह भी रोई होगी लेकिन बेहोशी मी मैं सुन नही पाई ॥ लेकिन उस बेहोशी में जब उसे टुकुर टुकुर सब और ताकते देखा त्तो मेरी आंखें नम हो गयीं ॥ शायद खुशी के आँसू की अनिभूति मैंने जीवन में पहली बार की।
कभी कभी सोचती हूँ की एक स्त्री कितना बदल जाती है जब उसे एक माँ कहने वाला मिल जाता
है । ख़ुद को जब देखती हूँ
त्तो आश्चर्य किए बिना नही रह पाती ... कहाँ मैं अपनी ज़िंदगी हमेशा अपने
तरीके से जीने waali, बड़े बड़े उपदेशों को डर -के -नार कर वही करती जो दिल चाहता ॥ दूसरो
को टू छोड़ो , कभी अपनी पतिदेव के आगे नही झुकी ॥ आज वही निधि अपनी 6 महीने की बिटिया की एक आवाज़ पे सब कुछ निसार करने को तैयार है .. जब कोई मुझसे पूछता की तुम्हारी होब्बिएस क्या
है ॥ मैं कहती सोना .. मेरी माँ बताती है .. बचपन मी मैं ऐसा सोती थी की लोग घर का दरवाज़ा तोड़ के अन्दर चले आए और मेरे कान मी जून तक न रेंगी .. और आज , वही निधि , कृष्ण की कृपा से एक माँ ban गई है .. चिया की हलकी सी पुकार भी मुझे मेरी नींद से जगा देती है .. उसकी करवटों से मैं जग जाती हूँ , उसकी नन्ही अठखेलियाँ मुझे लालायित किए रहती है .. और नन्ही अंकों मी मासूमियत भी है और प्यार भी , शैतानी भी है और भोलापन भी .. इससे अच्छा मनोरंजन चैनल कोई
क्या देगा अब मुझे ॥
नवम्बर 26, 2007 - यह दिन मेरे जीवन का एक अनमोल दिन है क्यूंकि इससे पहले मैंने अपनी चिया को हँसते , खिलखिलाते पहले कभी नही देखा था .. बड़ी मौसी ने जाने क्या जादू किया था की रात -दिन
रोने वाली चिया अज सुबह सुबह खिलखिला के हंस रही थी ॥ हॉस्पिटल से छुट्टी के चेह दिन बाद ही स्तोमच इन्फेक्शन से दोबारा हॉस्पिटल पहुँची मेरी चिया ने मुझे माँ होने का अहसास दिला दिया था , वहाँ से लौटने के बाद भी कई खुशी के मौके आए , पर मैंने न जाने किस उदासी मी डूबी अपनी चिया
के साथ ज़िंदगी के वह मेज़ नही ले पा रही थी जिसके बरे मी मुझे मेरे मित्रों ने बताया था ॥ मुझे
भी लगने लगा था शायद मेरे रोने के दिन aa गए है । पर सब वक्त वक्त की बात थी , यह टू अब समझ मी आ रहा है ।
ऐसे अनेक मनोहर पल आज भी हमारी राह देख रहे है जब संदीप की लाडली अपनी नन्ही
अठखेलियों से हमें मोहित करें । उसका रोना , हँसना , पापा , दादा कहना , पलटना , और दिन भर घर मी धमाचौकादी मचाना मुझे हमेशा अपने इष्ट को धन्यवाद करने की याद दिलाता है की उन्होंने मुझे
जीवन का सबसे बड़ा सुख दिया । इससे पहले की हमारी चिया फुर्र से अपनी दुनाया मी उड़ जाए , और
हम हाथ मलते रह जाएं , मैं उसके बचपन की सारी स्मृतियों को अपने मन में कैद कर लेना चाहती हूँ
।हरे कृष्ण !