Thursday, June 11, 2015

तलाश

हमेशा सुना था की इंसान कभी पूर्ण नहीं होता  सब में कुछ ना कुछ कमियां होती ही हे  ऐसा क्यों करता हे ऊपर वाला ? क्यों हमारे कुछ टुकड़े,  हमारे अपने टुकड़े इधर उधर फेक देता हे   जिसे हम ज़िन्दगी भर ढूंढते रहते हे   सब कुछ होते हुए भी कुछ ना कुछ छूट  जाता हे, जो नहीं होता अपपने पास   कोई पा भी लेता हे जल्दी उन टुकड़ों को और किसी के  नसीब में सिर्फ तलाश होती हे जिसमे एक उम्र बीत जाती हे अब ये मत कहना की तलाश नहीं होती हे किसी को   सबको होती हे बस रूप अलग अलग होता हे , किसी को पैसे की तलाश हे , किसी को प्यार की, किसी को ज्ञान तो किसी को मोक्ष और कोई सिर्फ शान्ति तलाश रहा होता हे मगर हर इंसान शामिल हे इस दौड़ में  
में साहिल पे लिखी हुए इबादत नहीं जो लहरों से मिट जाती हे 
में बारिश की बरसाती बूँद भी नहीं जो बरस कर थम जाती हे 
में ख्वाब नहीं जिसे देखा और भुला दिया 
में शमा नहीं जिसे फूंका और बुझा दिया 
मई हवा का झोंका  भी नहीं जो आया और गुज़र गया 
में चाँद भी नहीं जो रात के बाद ढल गया 
में तो एक एहसास हूँ जो तुझमे लहू बन कर गर्दिश करे 
में तो वह रंग हूँ जो तेरे दिल पे चढ़ते तो कभी न मिटे 
में वह गीत हूँ जो तेरे लबों से ज़ुदा न होगा 
ख्वाब, इबारत , हवा की तरह, चाँद , बूँद , शमा की तरह 
मेरे मिटने का सवाल ही नहीं
क्योंकि मैं तो तेरी मोहब्बत हूँ।
क्योंकि में तेरा जुनून हूँ। 
में तो एक दोस्त हूँ।