हमेशा सुना था की इंसान कभी पूर्ण नहीं होता सब में कुछ ना कुछ कमियां होती ही हे ऐसा क्यों करता हे ऊपर वाला ? क्यों हमारे कुछ टुकड़े, हमारे अपने टुकड़े इधर उधर फेक देता हे जिसे हम ज़िन्दगी भर ढूंढते रहते हे सब कुछ होते हुए भी कुछ ना कुछ छूट जाता हे, जो नहीं होता अपपने पास कोई पा भी लेता हे जल्दी उन टुकड़ों को और किसी के नसीब में सिर्फ तलाश होती हे जिसमे एक उम्र बीत जाती हे अब ये मत कहना की तलाश नहीं होती हे किसी को सबको होती हे बस रूप अलग अलग होता हे , किसी को पैसे की तलाश हे , किसी को प्यार की, किसी को ज्ञान तो किसी को मोक्ष और कोई सिर्फ शान्ति तलाश रहा होता हे मगर हर इंसान शामिल हे इस दौड़ में
Thursday, June 11, 2015
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